बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 आहार, पोषण एवं स्वच्छता
आहारीय रेशा
(Diatey Fibers)
आहारीय रेशा, आहार में उपस्थित रेशे तत्त्व को कहते हैं। ये पौधों से मिलने वाले ऐसे तत्व हैं जो स्वयं तो अपाच्य होते हैं, किन्तु मूल रूप से पाचन क्रिया को सुचारु बनाने का अत्यावश्यक योगदान करते हैं। रेशे शरीर की कोशिकाओं की दीवार का निर्माण करते हैं। इनको इन्जाइम भंग नहीं कर पाते हैं। अतः ये अपाच्य होते हैं। कुछ समय पूर्व तक इन्हें आहार के सम्बन्ध में बेकार समझा जाता था किन्तु बाद की शोधों से ज्ञात हुआ कि इनमें अनेक यांत्रिक एवं अन्य विशेषताएँ होती हैं। जैसे ये शरीर में जल को रोककर रखते हैं। जिससे अवशिष्ट (मल) में पानी की कमी नहीं हो पाती है और कब्ज की स्थिति से बचे रहते हैं। रेशे वाले भोजन स्रोतों को प्रायः उनके घुलनशीलता के आधार पर बाँटा जाता है। ये रेशे घुलनशील और अघुलनशील होते हैं। ये दोनों तत्त्व पौधों से मिलने वाले रेशों में पाए जाते हैं। सब्जियाँ, गेहूँ और अधिकतर अनाजों में घुलनशील रेशें की अपेक्षा अघुलनशील रेशा होता है। स्वास्थ्य में योगदान की दृष्टि से दोनों रेशों अपना-अपना काम करते हैं। ढंग से काम करत ेहैं। जहाँ घुलनशील रेशे से संपूर्ण स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, वहीं अघुलनशील रेशे से मोटापा संबंधी समस्या भी बढ़ सकती है। अघुलशील रेशे पाचन में मदद करते हैं। और कब्ज कम करते हैं। घुलनशील रेशें पाचन में मदद करते हैं। और कब्ज कम करते हैं।
भोजन में जिस प्रकार प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, खनिज लवण तथा विटामिन आवश्यक हैं, उसी प्रकार रेशेदार पदार्थ भी आवश्यक हैं। सन्तुलित भोजन में रेशेदार पदार्थ बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। रेशेदार पदार्थों के प्रयोग से कब्ज नहीं होता है तथा मल का शरीर से अच्छी प्रकार से निष्कासन होता है। इनके अधिक मात्रा में प्रयोग करने से उदर सम्बन्धी बीमारियाँ भी नहीं होती हैं। अत्यधिक महीन भोजन का उपयोग करने से आँतों को उन्हें पचाने में कठिनाई होती है। भोजन को आगे बढ़ाने में आँतों को अधिक परिश्रम करना पड़ता है।
ये वे पदार्थ हैं जो आँतों में भोजन के सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का रक्त में आत्मीकरण हो जाने पर शेष रह जाते हैं। ये पदार्थ पचते नहीं हैं। अतः ये अन्य विकारयुक्त पदार्थ से आँतों की सफाई करने में सहायक होते हैं। इन्हें अंग्रेजी भाषा में रफेज (Rouphage) कहते हैं।
संगठन (Composition ) — सेल्यूलोज फाइबर का सबसे महत्त्वपूर्ण रूप है। यह 3000 या उससे भी अधिक ग्लूकोज की इकाइयों के आपस में जुड़ने से बनता है। इसमें पानी को अवशोषित करने का गुण होता है। हेमीसेल्यूलोज शाखादार होता है तथा ये जाइलोज, गैलेक्टोज, मैनोज, अरेबिनोज व कुछ अन्य शर्कराओं के जुड़ने से बनते हैं। लिगनिन (Lignin) वनस्पति कोशिकाओं की कोशिक भित्ति में पाया जाने वाला पौलीसेकेराइड है। पेक्टिन व अगार अगार हेमीसेल्यूलोज के उदाहरण हैं। पेक्टिन कुछ विशेष तरह के फलों, उनके छिलकों व बीजों में उपस्थित रहता है। पानी अवशोषित करने के गुण के कारण पैक्टिन से फ्रूट जेली बनाई जाती है। अगार अगार समुद्री घास से प्राप्त किया जाता है तथा इनका प्रयोग विभिन्न व्यंजनों को गाढ़ा करने के लिए 'थिकनिंग एजेन्ट' (thickenig agent) के रूप में किया जाता है।
वर्गीकरण (Classification) - संगठन के आधार पर फाइबर को दो भागों में वर्गीकृत किया गया है-
1. पानी में घुलनशील फाइबर (Water soluble fibres ) - पानी में घुलनशील फाइबर है— पैक्टिन, गम व म्यूसिलेज।
2. पानी में अघुलनशील फाइबर (Water insoluble fibres ) - पानी में अघुलनशील फाइबर हैं— सेल्यूलोज, हेमीसेल्यूलोज व लिग्निन।
कार्य (Funtions ) — फाइबर कई महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। जोकि निम्नलिखित हैं-
1. फाइबर में पानी के अवशोषण की अभूतपूर्व क्षमता होती है। ये अपने वजन से 15 गुना पानी सोख लेते हैं व फूल जाते हैं जिससे मल में पानी की मात्रा बनी रहती है व कब्ज नहीं हो पाती।
2. फाइबर पाचन मार्ग को गतिशीलता को बढ़ाता है।
3. आँतों के कैंसर को रोकने में भी फाइबरयुक्त भोजन महत्त्वपूर्ण है।
स्रोत- रेशदार पदार्थ प्रमुख रूप से हरी सब्जियों, ककड़ी, खीरा, चुकन्दर, मांस, फल, गाजर, शलगम, बन्दगोभी, अंजीर आदि में बहुतायत से मिलता है।
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